बचपन- छुटपन की यादों में
खोये छुटपन की यादो में
जब मस्त मगन हम होते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।
हर अनजानी चीजो को
देख के खुश हम होते थे
नित सूर्य की नयी रश्मियों को
कोमल हाथों से छूते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।
आसमान के उस छोर के
बारे में सोचा करते थे
और तितलियों के पीछे -पीछे
हम बच्चे दौड़ा करते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।
खेल कूद खूब दौड़ा भागी
साथियो संग करते थे
कभी था हँसना कभी था रोना
पर मस्ती में ही जीते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।।
खोये छुटपन की यादो में
जब मस्त मगन हम होते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।
हर अनजानी चीजो को
देख के खुश हम होते थे
नित सूर्य की नयी रश्मियों को
कोमल हाथों से छूते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।
आसमान के उस छोर के
बारे में सोचा करते थे
और तितलियों के पीछे -पीछे
हम बच्चे दौड़ा करते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।
खेल कूद खूब दौड़ा भागी
साथियो संग करते थे
कभी था हँसना कभी था रोना
पर मस्ती में ही जीते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।।
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